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इंदिरा एकादशी 2024: महत्व और कथा

महत्व और कथा

इंदिरा एकादशी 2024: इंदिरा एकादशी का व्रत हर साल आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन पितरों की शांति और मोक्ष के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से न केवल पितरों को शांति मिलती है, बल्कि भक्तों की सभी इच्छाएं भी पूरी होती हैं।

इंदिरा एकादशी का महत्व

इंदिरा एकादशी को पितृ शांति का सर्वोत्तम दिन माना गया है। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत के द्वारा पितरों को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है और भक्तों के सभी पाप मिटते हैं। जो व्यक्ति इस दिन श्रद्धा और भक्ति के साथ व्रत करता है, उसकी हर इच्छा पूर्ण होती है।

इंदिरा एकादशी की कथा

इंदिरा एकादशी का व्रत हर साल आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों के पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत का विशेष महत्व है, जो पितृ श्राद्ध और तर्पण के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

इंदिरा एकादशी 2024
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कथा

प्राचीन काल में, एक महान धर्मात्मा राजा इंद्रसेन, जो महिष्मति नगरी के शासक थे, अत्यंत धार्मिक और भगवान विष्णु के भक्त थे। राजा हमेशा अपनी प्रजा की भलाई और अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए चिंतित रहते थे।

एक दिन, देवर्षि नारद राजा के दरबार में आए। राजा ने उनका स्वागत किया और उनकी सेवा की। नारद मुनि ने कहा, “हे राजन! मैं यमलोक से आया हूं, जहाँ मैंने आपके पिता को देखा। वे व्रतभंग के दोष से यमराज के पास दुख भोग रहे हैं। उन्होंने आपसे कहा है कि आप इंदिरा एकादशी का व्रत करें, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले और वे स्वर्गलोक को प्राप्त कर सकें।”

राजा इंद्रसेन ने पूछा, “हे मुनिश्रेष्ठ, कृपा करके मुझे इस व्रत की विधि बताएं।” नारद मुनि ने कहा, “आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को श्रद्धा पूर्वक व्रत करना चाहिए। इस दिन प्रातः स्नान करें, सूर्य देव को जल चढ़ाएं, और भगवान विष्णु की पूजा करें। आपको उपवास रखना है और पितरों के लिए श्राद्ध भी करना है।”

राजा ने नारदजी द्वारा बताए गए विधि के अनुसार व्रत करने का निर्णय लिया। उन्होंने पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ व्रत का पालन किया। उन्होंने पितरों के नाम से श्राद्ध किया और ब्राह्मणों को भोजन कराया। राजा ने उपवास रखा और रात्रि में जागरण किया।

व्रत की विशेष विधि

राजा इंद्रसेन ने व्रत की सभी विधियों का पालन करते हुए पूरी निष्ठा से भगवान विष्णु की आराधना की। उन्होंने अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए कई विशेष अनुष्ठान किए।

जब व्रत समाप्त हुआ, तो आकाश से फूलों की वर्षा हुई। देवताओं ने राजा की भक्ति को देखा और उनकी पूजा से प्रभावित होकर राजा के पिता गरुड़ पर सवार होकर विष्णुधाम को चले गए।

राजा इंद्रसेन को यह देख कर immense खुशी हुई, और उन्होंने अपने राज्य को एक सुखमय जीवन जीने के लिए संकल्पित किया। अंत में, राजा इंद्रसेन ने अपने पुत्र को राज्य पर बिठाया और स्वयं भी स्वर्ग लोक को चले गए।

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कथा का संदेश

इस प्रकार, इंदिरा एकादशी का व्रत न केवल पितरों को मोक्ष दिलाने वाला है, बल्कि यह भक्तों को भी सभी पापों से मुक्त कर देता है। जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

इंदिरा एकादशी पूजा विधि

इस दिन व्रत करने की विशेष विधि है:

  1. प्रातः स्नान और सूर्य देवता को जल चढ़ाना: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य देवता को जल अर्पित करें।
  2. भगवान विष्णु की पूजा: फिर भगवान विष्णु की पूजा करें। उन्हें पीले रंग के फूल, पंचामृत और तुलसी अर्पित करें।
  3. व्रत का संकल्प: इस दिन का व्रत लेने के लिए एकाग्रता से संकल्प लें और निम्न मंत्र का जाप करें:
   अद्य स्थित्वा निराहारः
   सर्वभोगविवर्जितः
  1. पितरों के लिए श्राद्ध: दिन के मध्य में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और गायों को भी भोजन कराना न भूलें।
  2. रात्रि जागरण: रात्रि में भगवान विष्णु के समक्ष जागरण करें और ध्यान लगाएं।
  3. द्वादशी के दिन पुनः पूजा:** द्वादशी के दिन पुनः भगवान विष्णु की पूजा करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

इंदिरा एकादशी 2024 का पंचांग

इस वर्ष इंदिरा एकादशी का व्रत 28 सितंबर 2024, शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन की पंचांग जानकारी इस प्रकार है:

निष्कर्ष

इंदिरा एकादशी का व्रत न केवल पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करता है, बल्कि यह भक्तों के जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि लाने का कार्य भी करता है। इस दिन की पूजा विधि को ध्यानपूर्वक अपनाकर भक्त अपने जीवन में सुख और शांति का अनुभव कर सकते हैं। इस वर्ष के इंदिरा एकादशी पर, श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करने का प्रयास करें और अपने पितरों को श्रृद्धांजलि अर्पित करें।

अस्वीकरण

यह लेख धार्मिक और सांस्कृतिक जानकारी प्रदान करने के लिए है। इसमें प्रस्तुत तथ्य और मान्यताएँ विभिन्न धार्मिक परंपराओं से लिए गए हैं। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे व्यक्तिगत निर्णय लेने से पहले विशेषज्ञों या धार्मिक विद्वानों से परामर्श करें। इस लेख में दी गई जानकारी के उपयोग के लिए लेखक या प्लेटफॉर्म जिम्मेदार नहीं हैं।

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