भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह केसे हुआ।
bhagwan vishnu aur lakshmi ji ke vivah ki katha हिंदू धर्म में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कथा अत्यंत पवित्र और श्रद्धा से परिपूर्ण है। भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनकर्ता माना जाता है, वहीं माता लक्ष्मी को धन, वैभव, सौंदर्य और समृद्धि की देवी माना जाता है। इन दोनों की कथा न केवल एक दिव्य प्रेम की प्रतीक है, बल्कि यह धर्म और सौंदर्य के संगम की अनूठी गाथा भी है।
समुद्र मंथन :
विष्णु और लक्ष्मी के विवाह की सबसे प्रसिद्ध कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। एक समय ऐसा आया जब देवी लक्ष्मी सृष्टि से अदृश्य हो गईं। जब वे अदृश्य हुईं तो तीनों लोकों में असंतुलन उत्पन्न हो गया। देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई, पृथ्वी पर दरिद्रता फैल गई और असुरों का प्रभाव बढ़ने लगा। ऐसे समय में सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे उपाय पूछने लगे।

भगवान विष्णु ने बताया कि यदि समुद्र मंथन किया जाए तो उसमें से अमृत सहित अनेक दिव्य वस्तुएं प्राप्त होंगी, और माता लक्ष्मी भी उसी में से पुनः प्रकट होंगी। इस मंथन को संभव बनाने के लिए देवताओं और असुरों ने एक अस्थायी संधि की। मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया और वासुकी नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया। स्वयं भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार (कछुए का रूप) लेकर मंदराचल को अपने पीठ पर स्थापित किया।
bhagwan vishnu aur lakshmi ji ke vivah ki katha
लक्ष्मी प्रकट होती हैं
जब समुद्र मंथन आरंभ हुआ, तो उसमें से अनेक वस्तुएँ निकलीं हलाहल विष, ऐरावत हाथी, कामधेनु, कल्पवृक्ष, अप्सराएँ आदि। अंततः जब समुद्र मंथन अपने चरम पर था, तब उसमें से देवी लक्ष्मी प्रकट हुईं। उनका स्वरूप अत्यंत दिव्य, तेजस्वी और मनोहर था। वे हाथों में कमल लिए प्रकट हुईं और उनके साथ संगीत, सौंदर्य और समृद्धि का अद्भुत वातावरण बना।
देवी लक्ष्मी ने अपने रूप से समस्त संसार को चमत्कृत कर दिया। देव, दानव, गंधर्व और सभी जीव उनके सौंदर्य से मोहित हो गए। वे हर किसी की ओर देखती रहीं, लेकिन उनके मन में एक ही इच्छा थी वे ऐसा जीवनसाथी चाहती थीं जो धर्म, सत्य, करुणा और शक्ति का प्रतीक हो। अंत में, उनकी दृष्टि भगवान विष्णु पर पड़ी। विष्णु की शांत छवि, गंभीर व्यक्तित्व और दिव्य तेज से वे अत्यंत प्रभावित हुईं।
Read : Colonel Sophia Qureshi kon hain
विवाह की रस्में :
देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को वर के रूप में चुना और उन्हें वरमाला पहनाई। यह दृश्य देवताओं, ऋषियों और अप्सराओं की उपस्थिति में संपन्न हुआ। ब्रह्मा जी ने स्वयं यह विवाह संपन्न कराया। आकाश से पुष्प वर्षा हुई गंधर्वों ने मधुर संगीत बजाया, और समस्त सृष्टि इस दिव्य मिलन से आलोकित हो उठी। यह विवाह त्रिलोक में धर्म और वैभव के मिलन का प्रतीक बना।

इस विवाह के बाद लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर वास करना स्वीकार किया। इसी कारण उन्हें “श्रीवक्षस्थला” भी कहा जाता है। वे विष्णु के साथ सदा रहने लगीं और उनका अंश बन गईं। जिस प्रकार विष्णु सृष्टि की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार लक्ष्मी उस सृष्टि को समृद्धि और सुंदरता प्रदान करती हैं।
bhagwan vishnu aur lakshmi ji ke vivah ki katha
प्रतीकात्मक अर्थ :
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, यह धर्म और समृद्धि के सह-अस्तित्व का प्रतीक है। जहां विष्णु धर्म, नीति और पालन के प्रतीक हैं, वहीं लक्ष्मी भौतिक और मानसिक सुख-सुविधाओं की देवी हैं। यह विवाह यह दर्शाता है कि सच्चे सुख के लिए केवल धन ही नहीं, धर्म और मर्यादा भी आवश्यक है।
विष्णु के साथ लक्ष्मी के रहने का यह भी अर्थ है कि समृद्धि उसी स्थान पर टिकती है जहाँ धर्म और नीति होती है। लक्ष्मी को चंचला कहा जाता है वो एक जगह स्थिर नहीं रहतीं है लेकिन जब वे विष्णु के साथ रहती हैं, तो वे स्थिर हो जाती हैं। यही संदेश है कि अगर कोई धर्म और मर्यादा के मार्ग पर चलता है, तो लक्ष्मी स्वयं उस व्यक्ति के पास स्थायी रूप से रहती हैं।
bhagwan vishnu aur lakshmi ji ke vivah ki katha
निष्कर्ष :
भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह न केवल एक दिव्य युगल के मिलन की कथा है, बल्कि यह हमें सिखाता है कि जीवन में धर्म, नीति और प्रेम के साथ समृद्धि, सौंदर्य और संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है।

T. Yuvraj Singh is a dedicated journalist passionate about delivering the latest news and insightful analysis. With a strong background in media, he aims to engage readers through accurate and thought-provoking stories. When not writing, Yuvraj enjoys reading and exploring global affairs. Follow him for fresh perspectives on current events.