Ekadashi Mahatma Katha

Ekadashi Mahatma Katha

Ekadashi Mahatma Katha

एकादशी महात्म्य कथा।Ekadashi Mahatma Katha

1उत्पन्ना एकादशीमार्गशीर्ष : कृष्ण पक्ष
2मोक्षदा एकादशीमार्गशीर्ष : शुक्ल पक्ष
3सफला एकादशीपौष : कृष्ण पक्ष
4पुत्रदा एकादशीपौष : शुक्ल पक्ष
5षटतिला एकादशीमाघ : कृष्ण पक्ष
6जया एकादशीमाघ : शुक्ल पक्ष
7विजया एकादशीफाल्गुन मास : कृष्ण पक्ष
8आमला एकादशीफाल्गुन : शुक्ल पक्ष
9पापमोचनी एकादशीचैत्र : कृष्ण पक्ष
10कामदा एकादशीचैत्र : शुक्ल पक्ष
11बरूथिनी, एकादशीबैशाख : कृष्ण पक्ष
12मोहिंजी एकादशीबैशाख : शुक्ल पक्ष
13अफ्रा एकादशीज्येष्ठ : कृष्ण पक्ष
14निर्जला एकादशीज्येष्ठ : शुक्ल पक्ष
15योगिनी एकादशीआषाढ़ : कृष्ण पक्ष
16देवशयनी (पद्ममा) एकादशी (चातुर्मास्य विधान)आषाढ़ शुक्ल पक्ष
17कामदा एकादशीश्रावण : कृष्ण पक्ष
18पुत्रदा एकादशीश्रावण : शुक्ल पक्ष
19अजा एकादशीभाद्रपद : कृष्ण पक्ष
20वामन (परिवर्तिनी) एकादशीभाद्रपद : शुक्ल पक्ष
21इन्दिरा एकादशीआश्विन : कृष्ण पक्ष
22पापांकुशा एकादशीआश्विन : शुक्ल पक्ष
23रमा एकादशीकार्तिक : कृष्ण पक्ष
24प्रबोधिनी (देवोत्थान) एकादशीकार्तिक शुक्ल पक्ष
25पद्मिनी एकादशीअधिक (लौंद) मास: शुक्ल पक्ष
26परमा एकादशीअधिक (लौंद) माह : कृष्ण पक्ष
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एकादशी व्रत महात्म्य

कथाश्री सूत जी महाराज शौनक आदि अ‌ट्ठासी हजार ऋषियों से बोले – हे महर्षियों! एक वर्ष के अन्दर बारह महीने होते हैं और एक महीने में दो एकादशी होती हैं। इस प्रकार एक वर्ष में चौबीस एकादशी होती हैं। जिस वर्ष लौंद (अधिक मास) पड़ता है उस वर्ष दो एकादशी बढ़ जाती हैं। इस तरह कुल छब्बीस एकादशी होती हैं।

1. उत्पन्ना, 2. मोक्षदा (मोक्ष प्रदान करने वाली), 3. सफला (सफलता देने वाली), 4. पुत्रदा (पुत्र देने वाली), 5. षट्तिला, 6. जया, 7. विजया, 8. आमला, 9. पाप मोचनी (पापों को नष्ट करने वाली), 10. कामदा, 11. बरूथनी, 12. मोहिनी, 13. अपरा, 14. निर्जला, 15. योगिनी, 16. देवशयनी, 17. कामदा, 18. पुत्रदा, 19. अजा, 20. परिवर्तिनी, 21. इन्द्रा, 22. पापांकुशा, 23. रमा, 24. देवोत्थायनी। लौंद (अधिक) की दोनों एकादशियों का नाम क्रमानुसार पद्मिनी और परमा है।

ये सब एकादशी यथा नाम तथा गुण वाली हैं। इन एकादशियों के नाम तथा गुण उनके व्रत की कथा सुनने से मालूम होंगे। जो मनुष्य इन एकादशियों के व्रत को शास्त्रानुसार करते हैं, उन्हें उसी के फल की प्राप्ति होती है। श्री एकादशी व्रत उद्यापन विधिउद्यापन के दिन यजमान नित्यक्रिया से निवृत होकर शुभ्र या रेशमी वस्त्र धारण करें। अपनी पत्नी को उसी प्रकार पवित्र करके सपत्नीक शुद्ध मन होकर आसन पर बैठें।

‘ॐ पवित्रेस्थोः’ इस मन्त्र से यजमानं पवित्री धारण करे और भगवान् का ध्यान करे। पुनः ‘अपवित्रः पवित्रो वा’ इस मंत्र से पवित्र करें। यजमान के हाथ में अक्षत, पुष्प, सुपारी देकर ॐ आनोभद्रा- इत्यादि मन्त्र पढ़ना चाहिये। फिर यजमान को दक्षिण हाथ में द्रव्य, अक्षत, सुपारी, जल लेकर संकल्प करना चाहिये। संकल्प करके पृथ्वी, गौरी और गणेश का पूजन, कलश स्थापन, आचार्य वरणादि करके संकल्पित सब क्रियाओं का सम्पादन करना चाहिये।

ततः पूर्वनिर्मित सर्वतोभद्र पर ब्रह्मादि देवताओं का आवाह्न करना चाहिये। उसके ऊपर ताम्र का कलश स्थापित करना चाहिये। कलश में चावल भरा हो। उसके ऊपर चाँदी का पात्र हो। अष्टदल कमल बनाकर प्रधान देवता का आवाहन करना चाहिये।’सहस्त्र शीर्षा पुरुषः इत्यादि मंत्रों से लक्ष्मी सहित विष्णु का आवाहन करना चाहिये। अष्टदल के आठों पत्रों पर पूर्वादि क्रम से अग्नि, इन्द्र, प्रजापति, विश्वदेवा, ब्रह्मा, वासुदेव, श्रीराम का नाम लेकरआवाहन करना चाहिये, फिर चारों दिशाओं में क्रमशः रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती और कालिन्दी का आवाह्न करना चाहिये। चारों कोणों में आग्नयादि क्रम से शंख, चक्र, गदा का आवाह्न करना चाहिये।

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कलश के आगे गरुड़ का आवाह्न होना चाहिये । ततः पूर्वादि क्रम से इन्द्रादि लोकपालों का आवाहन करके षोड़शोपचार से पूजन करना चाहिए।फिर भगवान् के सर्वांग शरीर का पूजन औरनमस्कार करना चाहिये। स्नान, धूप, दीप, नैवेद्य,ताम्बूल से पंचोपकार पूजन करना चाहिये। पात्र मेंजलदार-नारियल, अक्षत, फूल, चन्दन और स्वर्णरखकर घुटने के बल बैठकर इस श्लोक (नारायणंहृषीकेशं लक्ष्मीकान्तं दयानिधे गृहणार्ध्वं मया दत्तं व्रतंसम्पूर्ण हेतवे) से अर्घ्य देना चाहिये। इसके पश्चात्इस दिन का कृत्य समाप्त करके गाने-बजाने से रात्रिव्यतीत करें।

दूसरे दिन यजमान तथा आचार्य नित्य कृत्य करके पुनः आचार्य ‘अपवित्रः पवित्रोवा’, पवित्रेस्थो व आनो भद्रा, आदि मन्त्रों का पाठ करके हवन का संकल्प करें और आवांहित देवताओं का पंचोपचार से पूजन करें।ततः ‘सहस्त्रशीर्षा पुरुषः’ इत्यादि 16 मन्त्रों से प्रधान के लिए हवन करना चाहिए। आवश्यकतावश केवल घी या पायस अथवा घी या पायसान्नयुक्त पी का हवन करना चाहिए।हवन के पश्चात् तीन बार अग्नि की प्रदक्षिणा करें। फिर जानु के बल बैठकर पुरुषसूक्त का पाठ करना चाहिये। ततः शेष हव्य तथा आज्य का हवन करना चाहिये। ततः आचार्य शुल्व प्रहरण करके प्रायश्चित संकल्प करावें और हवन समाप्त करें। ब्राह्मण को तूर्ण पात्र का दान दें। आचार्य को दक्षिणा के साथ सवत्सा सालंकारा श्वेत गाय दें।

यजमान 12 ब्राह्मणों को केशवादि 12 देवताओं का स्वरूप मानकर उनका पूजन करे, 2 कलश, दक्षिणा, धन, मिठाई और वस्त्र से युक्त करके दे। ततः प्रधान पीठ पर कल्पित केशवादि देवताओं का उद्यापन करके आचार्य को दान दें। ततः आचार्य वैदिक तथा मन्त्रोक्त जल छिड़कें। अग्नि की पूजा करे। फिर प्रार्थना करे, विसर्जन करे। ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा सहित ताम्बूल दे। स्वयं भी सपरिवार इष्ट मित्रों सहित भोजन करे। इस प्रकार विधिपूर्वक योग्य आचार्य के निर्देशन में उद्यापन करने से एकादशी व्रत की सिद्धि होती हैं।

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